हर नज़र काँप उठेगी महसर के दिन
खौफ से हर कलेजा दहल जाएगा
पर ये नाज़ उनके बन्दे का देखेँगे सब
थाम कर उनका दामन मचल जाएगा !
मौज कतरा के हमसे गुज़र जाएगी
रुख मुखालिफ हवा का बदल जायगी
जब इशारा करेंगे वो नाम-ए-खुदा
अपना बेड़ा भवर से निकल जाएगा !
रब्बे-सलीम वो फरमाने वाले मिले
क्यों सता-ते है ऐ दिल तुजे वस वसे
पुल से गुज़रे गए हम वजद करते हुई
अरे कौन कहेता है पाउ फिसल जाएगा !
के यू तू जिता हु हुक्मे खुदा से मगर
मेरे दिल की है उनको यक़ीनन खबर
हासिले ज़िंदगी होगा दिन वो मेरा
उनके कदमो जब दम निकल जाएगा !
अखतरे-खस्ता ! क्यों इतना बेचैन है
तेरा आक़ा शहनशाए कोनेंन है !
लो लगा लो तो सही साहे लौलाक से
गम मुस्सरत के साँचे में ढल जाएगा !
सायर:-
हुज़ूर ताजुशरिया
नात-ख्वां:-
ओवैस राजा क़ादरी
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