सोचता हूँ मैं वो घड़ी क्या,अज़ब गड़ी होगी
जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी
आरज़ू है सिंने मैं घर बने मदीने मैं
हो करम जो बंदे पर बंदा परवरी होगी
सोचता हूँ मैं वो घड़ी क्या,अज़ब गड़ी होगी
जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी
बात क्या है बाद-ए-सबा! इतनी क्यों मु"अतर है
सब्ज़ सब्ज़ गुम्बंद को चुम कर चली होगी
सोचता हूँ मैं वो घड़ी क्या,अज़ब गड़ी होगी
जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी
सो खुलेंगे उसके लिए रेहमतो के दरवाज़े
नात-ए-मुस्तफा जिस ने एक भी सुनी होगी
सोचता हूँ मैं वो घड़ी क्या,अज़ब गड़ी होगी
जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी
देख तो नियाज़ी ज़रा सो गया क्या दीवाना
उनकी याद मैं शायद आँख लग गयी होगी
सोचता हूँ मैं वो घड़ी क्या,अज़ब गड़ी होगी
जब दर-ए-नबी पर हम सब की हाज़री होगी
एक ही निशानी है मुस्तफा के मेय-कश की
मुस्तफा के मेय-कश की आँख-मध-भरी होगी
नात-ख़्वाँ:-
अब्दुल हबीब अत्तारी
ओवैश राजा क़ादरी
0 Comments