Wo Shahre Mohabbat Jahan Mustafa Hai Lyrics / वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !
वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी
नज़र में बसाने को जी चाहता है

जो पूछा नबी ने के कुछ घर भी छोड़ा
तो सिद्दीके अकबर के होंटो पे आया
वहाँ मालो दौलत कि क्या है हक़ीक़त
जहाँ जाँ लुटाने को जी चाहता है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !

जिहादे मोह्हबत की आवाज़ गूंजीं
कहा हनज़ला ने ये दुल्हन से अपनी
इज़ाज़त अगर दो तो जाम-ए-शहादत
लबों से लगाने को जी चाहता है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !

सितारों से ये चाँद कहता है हर दम
तुम्हे क्या बताऊ वो टुकड़ों का आलम
इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था
के फिर टूट जाने को जी चाहता है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !

वो नन्हा सा असगर जो ऐड़ी रगड़ कर
यही केह रहा है वो ख़ैमे में रो कर
ए बाबा मैं पानी का पियासा नही हूँ
मेरा रन मैं जाने को जी चाहता है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !

जो देखा है रुए जमाले रिसालत
तो ताहिर ! उमर मुस्तफ़ा से ये बोले
बड़ी आप से दुश्मनी थी मगर अब
ग़ुलामी में आने को जी चाहता है

वो सेहरे मोहब्बत जहा मुस्तफा है
वही घर बनाने को जी चाहता है !
वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी
नज़र में बसाने को जी चाहता है


नात-ख़्वाँ:-
ज़ोहेब अशरफ़ी

Roman (Eng) :


Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!
Wo sone se kankar, wo chandi si mitti
Nazar mein basane ko ji chahta hai

Jo poocha Nabi ne ke kuchh ghar bhi chhoda
To Siddique Akbar ke honto pe aaya
Wahan mal-o-daulat ki kya hai haqiqat
Jahan jaan lutane ko ji chahta hai

Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!

Jihade mohabbat ki aawaz gunji
Kaha Hanzala ne ye dulhan se apni
Izazat agar do to jaam-e-shahadat
Labon se lagane ko ji chahta hai

Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!

Sitaron se ye chaand kehta hai har dam
Tumhe kya bataun wo tukdon ka aalam
Ishare mein Aqa ke itna maza tha
Ke phir toot jaane ko ji chahta hai

Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!

Wo nanha sa Asgar jo aedi ragad kar
Yehi keh raha hai wo khaimay mein ro kar
Ai baba main paani ka pyaasa nahi hoon
Mera rann mein jaane ko ji chahta hai

Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!

Jo dekha hai ruye Jamaale Risalat
To Tahir! Umar Mustafa se ye bole
Badi aap se dushmani thi magar ab
Gulami mein aane ko ji chahta hai

Wo sehre mohabbat jaha Mustafa hai
Wahi ghar banane ko ji chahta hai!
Wo sone se kankar, wo chandi si mitti
Nazar mein basane ko ji chahta hai




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