ख़ुसरवी अच्छी लगी न सरवरी अच्छी लगी
हम फ़क़ीरों को मदीने की गली अच्छी लगी
दूर थे तो ज़िंदगी बे-रंग थी बे कैफ़ थी
उन के कूचे में गए तो ज़िंदगी अच्छी लगी
मैं न जाऊँगा कहीं भी दर नबी का छोड़ कर
मुझ को कू-ए-मुस्तफ़ा की नौकरी अच्छी लगी
यूँ तो कहने को गुज़ारी ज़िंदगी मैंने मगर
जो दर-ए-आक़ा पे गुज़री वो घड़ी अच्छी लगी
वालिहाना हो गए जो तेरे क़दमों पर निसार
हक़-तआ'ला को अदा उन की बड़ी अच्छी लगी
नाज़ कर तू ऐ हलीमा सरवर-ए-कौनैन को
गर लगी अच्छी तो तेरी झोंपड़ी अच्छी लगी
मेहर-ओ-माह की रौशनी माना कि है अच्छी मगर
सब्ज़-गुम्बद की मुझे तो रौशनी अच्छी लगी
था मिरी दीवानगी में भी शुऊ'र-ए-एहतिराम
मेरे आक़ा को मिरी दीवानगी अच्छी लगी
आज महफ़िल में नियाज़ी ! ना'त जो मैं ने पढ़ी
आ'शिक़ान-ए-मुस्तफ़ा को वो बड़ी अच्छी लगी
नात ख़्वाँ:-
अहमद रज़ा क़ादरी
Roman (Eng) :
Khusravi achi lagi na, sarwari achi lagi
Hum faqiron ko Madine ki gali achi lagi
Door the to zindagi be-rang thi, be-kaif thi
Unke kooche mein gaye to zindagi achi lagi
Main na jaaunga kahin bhi dar-e-nabi ka chhod kar
Mujhko ku-e-Mustafa ki naukri achi lagi
Yun to kehne ko guzari zindagi maine magar
Jo dar-e-aqa pe guzri wo ghadi achi lagi
Walihaana ho gaye jo tere qadamon par nisar
Haq-ta'ala ko ada unki badi achi lagi
Naaz kar tu ae Haleema, sarwar-e-konain ko
Gar lagi achi to teri jhonpdi achi lagi
Mehar-o-mah ki raushni maana ki hai achi magar
Sabz-gumbad ki mujhe to raushni achi lagi
Tha meri deewangi mein bhi shauur-e-ehtiraam
Mere aqa ko meri deewangi achi lagi
Aaj mehfil mein niyazi, naat jo maine parhi
Aashiqan-e-Mustafa ko wo badi achi lagi
Naat Khwaan:-
Ahmad Raza Qadri
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