रोक लेती है आपकी निस्बत, तीर जितने भी हमपे चलते हैं
ये कराम है हुज़ूर का हमपर, आने वाले आज़ाब टालते हैं।वोही ही भरते हैं झोलियां सबकी, वोह समझते हैं बोलियां सबकी
आओ दरबार-ए-मुस्तफ़ा को चलें, ग़म ख़ुशी में वहीं पे ढलते हैं
अपनी औक़ात सिर्फ़ इतनी है, कुछ नहीं बात सिर्फ़ इतनी है
कल भी टुकड़ों पे उनके पलते थे, अब भी टुकड़ों पे उनके पल्टे हैं
और अब हमें क्या कोई गिरायेगा, हर सहारा गले लगाएगा
हमने ख़ुद को गिरा दिया है वहाँ, गिरने वाले जहाँ संभलते हैं
घर वही मुश्क़बार होते हैं, ख़ुल्द से हमकिनार होते हैं
ज़िक्र-ए-सरकार के हवालों से जिन घरों में चिराग जलते हैं
ज़िक्र-ए-सरकार के उजालों की, बे निहायत हैं रिफ़ाअतैं ख़ालिद
ये उजाले कभी ना सिमटेंगे, ये वो सूरज नहीं जो ढलते हैं
रोक लेती है आपकी निस्बत, तीर जितने भी हमपे चलते हैं
ये कराम है हुज़ूर का हमपर, आने वाले आज़ाब टालते हैं
नात ख़्वाँ:-
ओवैश रज़ा क़ादरी
Roman (Eng) :
Rok leti hai aapki nisbat, teer jitne bhi humpar chalte hain
Ye karam hai Huzoor ka humpar, aane wale azaab talte hain
Wohi bharate hain jholiyan sabki, woh samajhte hain boliyan sabki
Aao darbar-e-Mustafa ko chalein, gham khushi mein wahi pe dhalte hain
Apni auqaat sirf itni hai, kuch nahi baat sirf itni hai
Kal bhi tukdon pe unke palte the, ab bhi tukdon pe unke palte hain
Aur ab hamein kya koi girayega, har sahara gale lagayega
Humne khud ko gira diya hai wahan, girne wale jahan sambhalte hain
Ghar wahi mushqbaar hote hain, Khuld se hamkinar hote hain
Zikr-e-Sarkar ke hawalon se jin gharo mein chirag jalte hain
Zikr-e-Sarkar ke ujalon ki, be-nihaan hain rifa'atain Khalid
Ye ujale kabhi na simtenge, ye wo suraj nahi jo dhalte hain
Rok leti hai aapki nisbat, teer jitne bhi humpar chalte hain
Ye karam hai Huzoor ka humpar, aane wale azaab talte hain
Naat Khwaan:-
Owais Raza Qadri
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